'लेके शव फिरत ना जी ना धरी जान जानो जियरा तो रुपया रुझान एक धन है...... निर्छल पशु-खग आजु बी सन्तोष धरैं कलिकाली लालच मनुज भरे मन है... आग बिकी नीर बिके हवा संग क्षीर बिके बिक रहे मान सो शारदा के बचन हैं भोजन में विष मिलवाए बेंचे शान से रे नाम बड़वार भारी शान में मगन हैं...अर्चना'अनुपमक्रांति ©Archana pandey मनुष्य या शव? #Identity