क़तरा-क़तरा खुशियाँ हैं भीख-सी, पीर की नदियाँ समय की सीख-सी, मुझमे ज़िंदा है मेरी ये ज़िंदगी जैसे, सन्नाटों में फँसी हुई इक चीख़-सी।