यहां दिल्ली में,,पहली बात तो सुबह कभी जगता नहीं,,और अगर कभी जग जाऊ गलती से तो पाता हूँ बदबू भरी हवा जो सुबह सुबह नाले से अच्छी दुर्गन्ध लेते हुए आती है नेहरू विहार को जगाने सड़को पर बेपरवाही से फेंके गए कचरे के ढेर,,जो फेंके गए हैं नगरपालिका के भरोसे,, और वहीँ खड़ा कुत्तो का कुटुंब जो उस कचरे से अपने काम का समान निकालता बिखराता है यहां की हवा में बदबू के साथ साथ और कुछ भी मिल गया है एक अज़ीब बेचैनी और उदासी चाय की दुकानों पर अज़ीब से ख़्मोस चेहरे, कुछ बुजुर्ग कुछ नए पता ही नहीं चलता है की,चाय पी कौन रहा,,आनंद किसे मिल रहा चाय को या पीने वाले आदमी को