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मन अशांत था उसका कुछ बिखरा सा जान पड़ता ना जाने क

मन अशांत था उसका कुछ बिखरा सा जान पड़ता 
ना जाने कौनसा दर्द अपने भीतर छिपाए बैठा 
मानो खुद से खुदको भुलाए बैठा 
आँखों में लेकर टूटे से सपने 
 बेबसी लाचारी और अफ़सोस से घिरा व्यक्ति मौन सा रहता 
 हर घड़ी हर पल एक सन्नाटा सा छाया था चहरे पर उसके 
ना हंसता ना ही रोता बस खोया हुआ सा रहता 
 ऐसी भी क्या सज़ा उसने खुदको दी 
जो रिश्तों से डरा सा वो दुनिया से दूरी बना बैठा  
दूरी भी ऐसी जो ख़त्म ना हुई ख़त्म होने तक उसके 
बातों से घायल वो ज़िन्दगी से हार बैठा

©Dileep Raman #वो_ज़िन्दगी_से_हार_बैठा 
#Quotes