उस खिड़की पर बैठ कर चाय का कप किनारे से रख कर ,बस ये सोच रही थी। जो बच्चे पार्क में खेल रहे थे। क्या खेल मैने भी खेला था? वो छोटी बहन के स्कूल जाते देख वो भाई पहले भी उसका बसता उठाता था, वो सब्जियों की रेडी से गाजर उठाकर फिर को मुस्कुराता था, बहुत मामूली सी थी बातें फिर भी बेहद करीब से छू जाती थी वो यादें, ताज़ा बारिश की बूंदों में वो एक दूसरे पर पानी की छिटे डालकर चिढ़ाते थे, अगले ही पर में नाराज़ होती ,दोस्त मुझको आकर हंसाते, फिर कीचड़ में छपाके लगाते,घर पहुंच कर क्या मां की गोद नहीं डांट की बोच्छार होती। उस चाय की प्याली से बहुत सारी बाते यादें में घोलती मिश्री सी ज़िन्दगी की पहचान हो गई। क्या बताऊं बचपन की देहलीज क्या लांघी ज़िमेदारी की भोचर हो गई । चाय की प्याली में ख़ुद से निकलकर बचपन से मुलाकात हो गई। #Us_din #Nojoto #Bachpan #Deepthoughts #Feelings उस खिड़की पर बैठ कर चाय का कप किनारे से रख कर ,बस ये सोच रही थी। जो बच्चे पार्क में खेल रहे थे। क्या खेल मैने भी खेला था? वो छोटी बहन के स्कूल जाते देख वो भाई पहले भी उसका बसता उठाता था, वो सब्जियों की रेडी से गाजर उठाकर फिर को मुस्कुराता था, बहुत मामूली सी थी बातें फिर भी बेहद करीब से छू जाती थी वो यादें, ताज़ा बारिश की बूंदों में वो एक दूसरे पर पानी की छिटे डालकर चिढ़ाते थे,