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रजनी अत्याधिक रमणिक थी। था जोरों का‌ श्रृंगार सखी।

रजनी अत्याधिक रमणिक थी।
था जोरों का‌ श्रृंगार सखी।।
अंखियां दर्शण की प्यासी थीं।
ओढ़े थी घुंघट का हार सखी।।
हर आहट पर ह्रदय कह उठता था।
जाकर खोलो कोई द्वार सखी।।
प्रिय मिलन‌ की बेला थी।
अलवेला था दिल‌ का भाव सखी।।
सब सखियां हसकर यूं बोलीं।
अब हो जाओ तैयार सखी।।
प्रियतम अब आते  होंगें।
स्वप्न‌ होंगे‌ अब साकार सखी।।
प्रित वही सुख पाती है।
जो न मानें‌ कभी हार सखी।।
ये जीवन‌प्रिय को समर्पित है।
ये उन बिन है बेकार सखी।
हर जीवन में उनको पाऊं।
है इच्छा यही हर बार सखी।।

©Geet Sangeet
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