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जो मिला उसी से सबर कर लिया, कोई ठिकाना न मिला तो स

जो मिला उसी से सबर कर लिया,
कोई ठिकाना न मिला तो सफ़र कर लिया।

सोचा लोग मिलेंगे, समझेंगे मुझे
फिर खामोशी को ही अपना हमसफ़र कर लिया। 

कोई साथ दे या न दे परवाह नहीं हमे अब
हमने आसमां को छत, रास्ते को घर कर लिया।

किसी ने पूछा मुझसे,इतने खुश कैसे हो तुम
हमने ऊपर देखा और सजदे में सर कर लिया। 

कुछ तो बात है मुफलिसी में जीने में
की कैसे रब से राब्ता शामो शहर कर लिया।

तुम आए तो सबसे पहले मिलेंगे तुम्हे
धीरे धीरे तुम्हारे वादे का देखो असर कर लिया।

चलो साथ कही दूर बस चलते जाने के लिए
इन मकानों में हमने कुछ ज्यादा ही बसर कर लिया। 

अब ऊब गया है मन न जाने किस बात से यूं
हमने खाने को पत्थर,पीने को ज़हर कर लिया।

©Muntashir Soul
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