फुर्सत में बैठा आज, तो करने लगा खुद से बातें! याद है कि भूल गया, वो सारी बिन सोई रातें! थका जरूर पर, तू कभी रुका नहीं किस्मत के आगे, तू कभी झुका नहीं! थोड़ी लगन से, थोड़ी जतन से ,की तुमने घंटो पढ़ाई कभी गिर कर, फिर सम्भल कर, की तुमने सालों लड़ाई! मिली जो सफ़लता, हुई आपार खुशी फिर आज क्यूँ है तू, संसार से दुखी! नौ से पाँच के चक्कर में फंस कर, अंदर ही अंदर कराह रहा है तू आईने में दिखे मुर्दे सा जैसे, बस बाहर ही से मुस्करा रहा है तू! कह गए बुजुर्ग, थे जो ज्ञानी, सबने उनकी बात है मानी! कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है हंसने के लिए बंधु, पैदा होते रोना ही पड़ता है! फुर्सत में बैठा आज, तो करने लगा खुद से बातें याद है कि भूल गया, वो सारी बिन सोई रातें! थका जरूर पर, तू कभी रुका नहीं किस्मत के आगे,