चेहरे सभी की मुनव्वर हो गई थी यूं आने से तेरे उंगलियों ने भी मेरे मुझे मोहब्बत करना सिखाया होठों पे मेरे जो मोहम्मद {S.A.W} का नाम आया उंगलियों ने मुझे बारी-बारी से चूमना सिखाया तेरे आने से ही सबकी जुबा पे मिठासी परी थी मिलजुल के किया करते थे मोहब्बत-ए-इजहार...!अफ़तार साथ सभो में क्यूं कर के फींकी हमारी जिंदगानी अलवदां कहकर माहे रमज़ा तू यूं चला है...!! ताराबियों में यूं तेरे बारगाह में हमारा सर को झुकाना क्या तुझको नहीं आया पसंद हमारा रिझाना शेहयरियों में वह उठकर, खुद को सबसे पहले मौला आपकी बंदगीयो में हमारा खुद को पाना क्यों छीन चला है हम गुनाहगारों से ऐ ख़ुदा तू माहे रमज़ा अभी भी है हम सबों में गमों का गलबा ऐ ख़ुदा रा अलवदां कहके अलवदां क्यूं चला तू ऐ माहे रमज़ाना...!!! ©R...Khan #रमज़ाननुलवीदा #JumuatulWidaa Saurav Das