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हर साल की तरह तवाही लेकर आती है बरसात छिन जाती ह

हर साल की तरह तवाही  लेकर आती है बरसात
छिन जाती  है  साल भर की मेहनत की कमाई  
साथ ही छिन जाता है मुंह का निवाला भी ।
जिधर  देखो  पानी  ही पानी  
लेकिन  प्यास से बेदम  ,  पीने  को दो  घूंट नसीब नहीं 
न  कमर  टेकने की जगह , न कोई  रास्ता  
बच्चे  बूढ़ों  के लाचार  चेहरे 
तोड़  के रख देती   है 
 पानी के समन्दर में  तैरती जिन्दगी की नाव
भयावह  दृश्य    हर ओर  मौत  के मंजर  ,
कब किधर  से  अपने  आगोश  में  ले ले ।
यही  खाना  बदोश  जीवन  कई पीढियों  से  जीते  आ रहे  हैं 
जहां  कई पीढियों  पहले  थे आज  भी वहीं  हैं 
कोई  व्यवस्था  नहीं  हमारे  लिए 
नहीं  कोई  सुधार  की योजना 
फिर  हम स्वतन्त्र  कहां  हैं 
यदि होते  तो  हमारे  लिए   कोई  तो  योजना  बनती
हम भी इंसानों  की जिन्दगी  जीते 
भूके  प्यासे  फटे हाल  
बाढ़  उतरने  की प्रतीक्षा  में  
बाढ़  से पूर्व  का सभी  कुछ  खोकर 
फावडा कांधे पर उठाये 
नव  सृजन की तलाश  में  
दर  दर  न भटकना पड़ता  । बाढ़  हर वर्ष की तवाही

#flood
हर साल की तरह तवाही  लेकर आती है बरसात
छिन जाती  है  साल भर की मेहनत की कमाई  
साथ ही छिन जाता है मुंह का निवाला भी ।
जिधर  देखो  पानी  ही पानी  
लेकिन  प्यास से बेदम  ,  पीने  को दो  घूंट नसीब नहीं 
न  कमर  टेकने की जगह , न कोई  रास्ता  
बच्चे  बूढ़ों  के लाचार  चेहरे 
तोड़  के रख देती   है 
 पानी के समन्दर में  तैरती जिन्दगी की नाव
भयावह  दृश्य    हर ओर  मौत  के मंजर  ,
कब किधर  से  अपने  आगोश  में  ले ले ।
यही  खाना  बदोश  जीवन  कई पीढियों  से  जीते  आ रहे  हैं 
जहां  कई पीढियों  पहले  थे आज  भी वहीं  हैं 
कोई  व्यवस्था  नहीं  हमारे  लिए 
नहीं  कोई  सुधार  की योजना 
फिर  हम स्वतन्त्र  कहां  हैं 
यदि होते  तो  हमारे  लिए   कोई  तो  योजना  बनती
हम भी इंसानों  की जिन्दगी  जीते 
भूके  प्यासे  फटे हाल  
बाढ़  उतरने  की प्रतीक्षा  में  
बाढ़  से पूर्व  का सभी  कुछ  खोकर 
फावडा कांधे पर उठाये 
नव  सृजन की तलाश  में  
दर  दर  न भटकना पड़ता  । बाढ़  हर वर्ष की तवाही

#flood