जनहित की रामायण - 45 मिल्कीयत के पथ पर बढ़ रहे थे हम ! भिखारियत पथ पर चल पड़े हैं अब !! रोजमर्रा की कमाई में कठिनाईयाँ बढ़ी ! रोज़गार के अवसरों पे लाल झंडी लगी !! किसान को उपज का मिले न सही दाम ! शहरों में आ खोजता वो भी कोई काम !! जमीन बेचने से हो जाता मिल्कीयत से दूर ! शहर में काम न मिला तो सपने चकनाचूर !! कुछेक काम पर है, चार पैसे बचा पा रहे ! बचे पैसों को कई कई झपट्टे मार उड़ा रहे !! बैंक जमा में रकम दिन दिन घटती है ! जब महंगाई ब्याज से आगे चलती है !! बैंक में सुरक्षितता भी पांच लाख तक ही है ! इतने से मिल्कीयत तो बन ही ना सकती है !! निजी कर्ज लेनदेन पे ढ़ाई साल से सरकारी रोक है ! सरकार को जनता को भिखारी बनाने का शौक है !! म्यूच्यूअल फंड निवेश के गीत गाये जा रहे ! यहां जोखिम के मंडराते बादल कहर ढ़ा रहे !! शेयर बाजार भी जोखिम से है भरा ! सट्टे की राह पर निवेश कभी न खरा !! अर्थव्यवस्था की रीढ़ है जन जन में बचत प्रवृति ! सही निवेश वृद्धि से ही संभव मिल्कीयत समृद्धी !! निवेश आकर्षण ना रहे तो बढ़ेगा रोजमर्रा का खर्च ! यहीं से लग जायेगा हमसब को भिखारियत का मर्ज !! बढ़ा कोई भी खर्च तोड़ ही देगा कमर ! खर्च रकम जुटेगी कर्ज के पर्याय पर !! कर्ज का चक्रव्यूह ही भिखारियत की नींव है ! स्वार्थ सनी राजनीति जनहित प्रति निर्जीव है !! - आवेश हिन्दुस्तानी 12.09.2021 ©Ashok Mangal #JanhitKiRamayan #JanMannKiBaat #AaveshVaani #Investment #Investing #India2021