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ये रात, ये चांद, ये चांदनी ओढ़ के निर्मल आनंद मन क

ये रात, ये चांद, ये चांदनी
ओढ़ के निर्मल आनंद
मन को लुभाती हो तुम सदा
उन हवाओं के झोंको में
डोल जाता है मन, 
मनमोहन के नाम से
चल पड़ता है ना जाने
कौन सी राहों पर 
ढेरों लम्हों डुबा ख्यालों में तेरे।

©Shobha K.
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Shobha K.

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