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दो दिलों की गुस्ताख़ियाँ, नहीं क़ुबूल करता क्यों ज़म

 दो दिलों की गुस्ताख़ियाँ,
नहीं क़ुबूल करता क्यों ज़माना..!
मोहब्बत के बिना असंभव,
ये कठिन जीवन बिताना..!

जात धर्म को बता कर परम,
चक्रव्यूह अपनों के प्रति रचाना..!
नफ़रतों की नज़रों से,
ख़ुद को जरा बचाना..!

ख़ुशनसीब है वो मिला जिसे,
हमसफ़र चाहने वाला..!
मोहब्बत का इनाम वही,
वही बहुमूल्य खज़ाना..!

पवित्र सदा रखना चरित्र,
न पड़े बाद में पछताना..!
शिवा की क़लम कहे यही,
इश्क़ का अंदाज़ हो शायराना..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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