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तुम्हारी बेरुख़ी कुछ वैसी ही रही मेरे निराश्रय हृदय

तुम्हारी बेरुख़ी
कुछ वैसी ही रही
मेरे निराश्रय हृदय के लिए
जैसे 
उजाले की दूरी रही
रात से,
मैं बता न सकी तुम्हें
अनबन अपने हृदय और मन की
जैसे
क्षितिज में वार्तालाप करती धरा
दूर ही रही प्रत्यक्ष में व्योम से,
मैं प्रयासरत रही
पाने को आलिंगन तुम्हारा
पर निरर्थक रहा सब 
वैसे ही
जैसे भरसक प्रयत्न करती
घने वृक्ष की जड़
अतृप्त ही रहती है
बारिश की प्रथम बूँदों के स्पर्श से,
सत्य यही है
तुम्हारी बेरुख़ी
कुछ वैसी ही रही
मेरे कोमल मन के लिए
जैसे दामिनी का आघात हो
वसुंधरा के लिए..!
🌹 Copyright protected ©️®️
29/09/2020
#mनिर्झरा 
#yqdidi 
#yqquotes 
#yqdiary
#yqlove 
#yqtales
तुम्हारी बेरुख़ी
कुछ वैसी ही रही
मेरे निराश्रय हृदय के लिए
जैसे 
उजाले की दूरी रही
रात से,
मैं बता न सकी तुम्हें
अनबन अपने हृदय और मन की
जैसे
क्षितिज में वार्तालाप करती धरा
दूर ही रही प्रत्यक्ष में व्योम से,
मैं प्रयासरत रही
पाने को आलिंगन तुम्हारा
पर निरर्थक रहा सब 
वैसे ही
जैसे भरसक प्रयत्न करती
घने वृक्ष की जड़
अतृप्त ही रहती है
बारिश की प्रथम बूँदों के स्पर्श से,
सत्य यही है
तुम्हारी बेरुख़ी
कुछ वैसी ही रही
मेरे कोमल मन के लिए
जैसे दामिनी का आघात हो
वसुंधरा के लिए..!
🌹 Copyright protected ©️®️
29/09/2020
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