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कलम शब का सुकूत दश्त की तन्हाई दे गया क्या क्या वह

कलम शब का सुकूत दश्त की तन्हाई दे गया
क्या क्या वह यादगार शनासाई देगया

आंखों की तरह दिल के दरीचे भी खुल गये
झोंका हवा का ज़ख्म को बीनाई दे गया
 
कातिल की दोस्ती का सज़ा याफता हुं मे
मांगा था दर्द ज़हरे मसीहाई देगया

झुक कर तेरी जबी पे हया जिसको ले उड़ी
वह रंग और भी तुझे राअनाई दे गया 

मैने (कलम) समझ के उठाया जो मोज को
तूफान मेरी सोच को गहराई दे गया 
                            #Mustakeem rafi #कलम  Pratibha Tiwari Musher Ali  aman6.1 Dilip Makwana Prachi Agarwal
कलम शब का सुकूत दश्त की तन्हाई दे गया
क्या क्या वह यादगार शनासाई देगया

आंखों की तरह दिल के दरीचे भी खुल गये
झोंका हवा का ज़ख्म को बीनाई दे गया
 
कातिल की दोस्ती का सज़ा याफता हुं मे
मांगा था दर्द ज़हरे मसीहाई देगया

झुक कर तेरी जबी पे हया जिसको ले उड़ी
वह रंग और भी तुझे राअनाई दे गया 

मैने (कलम) समझ के उठाया जो मोज को
तूफान मेरी सोच को गहराई दे गया 
                            #Mustakeem rafi #कलम  Pratibha Tiwari Musher Ali  aman6.1 Dilip Makwana Prachi Agarwal

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