#प्रयागराज #maghmela2023 एक शहर में एक और नगर बसता है जब प्रयाग में अद्वितीय माघ-मेला लगता है। ठंड और कोहरे का फैल जाता है कहर जल उठते हैं अलाव यहां चारों पहर। संगम की रेत पर दिव्य ज्योति जल उठी बिछ गयें पुआल, धरती सोंधी महक उठी। जगमग दीप में चाँद गगन में जल गया भोर की ओट से सूरज मगन, पिघल गया। गड़ गये तंबू विस्तृत, देखो छा गयें अखाड़े शंख ध्वनि नाद में बहे गंग-धार बज गये नगाड़े। संस्कृति कला का संगम अनुपम सज गया श्रध्दालुओं की भीड़ से पवित्र संगम पट गया। सदैव से होता है यहां संगम, धर्म और अर्थ का तन से मन का सत्य से भ्रम का, कार्य से समर्थ का। झूले और शिल्प हाट से सज गया मैदान सारा हर्षोल्लास से मन हुआ विभोर, मलंग बंजारा। देखकर विहंगम दृश्य प्रयाग संगम तट का बचपना चहक गया,युवा मन फिर बहक गया। भक्तिभाव में एकाग्रचित मन कर तपस्वी लीन हुये इक्कीसवीं सदी में भी तपस्वी मनस्वी यहीं मिले। यहां संगम है मन का, छोड़कर जाति भेद सारे पावन धरती पर मिलने आये लाखों जन भेद बिसारें। ©ऋतु "मौसम" ©Ritu mishra pandey mausam #PrayagRaj #maghmela #Culture