कुसूर मोहब्बत का था या इन निगाहों का जो चुपके से दीदार आपसे कर बैठे हमें तो ख़ामोश रहना था लेकिन यह मेरा बेवफ़ा ज़ुबां इज़हार कर बैठा कुसूर मेरी मोहब्बत का नहीं था कि तुम मुझसे बेवफ़ा हो बैठे सुनो अब तुम लौट कर मत आना अब तन्हाई पर दिल मेरा आ बैठा कुसूर मोहब्बत की बस इतनी अब हम बेवफ़ाई को सलाम करते महफ़िल होती सबकी पसंद हम अपनी तन्हाई उनके नाम करते ♥️ Challenge-952 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।