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छूता मैं कैसे तुम्हीं कहो मैं आसमान को, तुमने अगर

छूता मैं कैसे तुम्हीं कहो मैं आसमान को,
तुमने अगर काँधे पे उठाया नहीं होता!

कैसे होता रौशन ये दरीचा हमारे घर का,
तुमने जो ज़िंदगी को जलाया नहीं होता!

मैं कैसे निभाता दुनिया के इन रिश्तों को,
तुमने अगर रिश्तों का मतलब समझाया नहीं होता!

कैसे संजोता वो बचपन की यादों को,
वो मेरा हर जन्मदिन उत्सव की तरह मनाया नहीं होता!

अनजान रहता आज भी मैं अपने शहर की गलियों से,
तुमने अगर मुझे हर रास्ता बताया नहीं होता!

मोटरसाइकिल की सैर में शायद आज सुकून मिलता,
बचपन में अगर साइकिल के पीछे बैठा कर स्कूल 
तक का सफ़र कराया नहीं होता!

कैसे मैं लिखता इन जज़्बातों को काग़ज़ पर,
पापा तुमने अगर मुझे पढ़ाया नहीं होता!

©kalpraj singh
  #Papa #Dreams #FathersDay #fatherson