आँखों में दौलत का नशा छाया था इस कदर, कि कुदरत की खूबसूरती पर कभी गईं न नजर। कमलेश गावों की सादगी आज भी है बरकरार जाने क्यों भा गये जमाने को, चकाचौंध भरे शहर। शहर की आबादी में "मैं " ही हैं सब, हम कुछ नहीं गावों में रिश्ते हैं ,शहरों मे किसी की भी नहीं कदर। कपड़े, मकान आदि बाहर से सब खुशहाल हैं शायद पर सबके भीतर लगता है, उथल पुथल सा मंजर। ©Kamlesh Kandpal #maya