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दिल पे जख्मों का सिलसिला देखो। क्या वफ़ा से हमें,

दिल पे जख्मों का सिलसिला देखो।
क्या वफ़ा से हमें, मिला देखो ।।

फिर भी करता हूं ,वफ़ा की बातें ।
ऐ जहां मेरा ,हौसला देखो ।।

तप रहा जिस्म मेरा ,बारिश में ।
दिल कोई आज ,फिर जला देखो ।।

उनके कांटों पे, भी नज़र रखना ।
फुल को जब ,खिला खिला देखो ।।

यूं ही मर मर के, जिंदा हूं मैं ।
मौत से मेरा, फासला देखो ।।

ईमान गिरवी है ,यहां जिसके "मनीष" ।
सर उठाए घर से, निकला देखो  ।।

कुमार मनीष
माटीगोड़ा (जादूगोड़ा) सामयिक
दिल पे जख्मों का सिलसिला देखो।
क्या वफ़ा से हमें, मिला देखो ।।

फिर भी करता हूं ,वफ़ा की बातें ।
ऐ जहां मेरा ,हौसला देखो ।।

तप रहा जिस्म मेरा ,बारिश में ।
दिल कोई आज ,फिर जला देखो ।।

उनके कांटों पे, भी नज़र रखना ।
फुल को जब ,खिला खिला देखो ।।

यूं ही मर मर के, जिंदा हूं मैं ।
मौत से मेरा, फासला देखो ।।

ईमान गिरवी है ,यहां जिसके "मनीष" ।
सर उठाए घर से, निकला देखो  ।।

कुमार मनीष
माटीगोड़ा (जादूगोड़ा) सामयिक