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#OpenPoetry हम हो गये नि-धन, धन चला गया। बचा है तन

#OpenPoetry हम हो गये नि-धन, धन चला गया।
बचा है तन फगत्, मन चला गया।
सुष्मित स्वराज की धरा चली गई।
तेजस तपस्या की परम्परा चली गई।
दुखी हे सभी मन जो चलीगयी आप।
रीक्तता दे रही यही सन्ताप। शत् शत् नमन
#OpenPoetry हम हो गये नि-धन, धन चला गया।
बचा है तन फगत्, मन चला गया।
सुष्मित स्वराज की धरा चली गई।
तेजस तपस्या की परम्परा चली गई।
दुखी हे सभी मन जो चलीगयी आप।
रीक्तता दे रही यही सन्ताप। शत् शत् नमन

शत् शत् नमन #OpenPoetry