ए दिल.... तू उसके नाम से इतना धड़कता क्यूँ है? लगती कौन है, वो तेरी.. चंद लम्हों की ही तो पहचान थी अपनी.. न कोई उम्मीद थी, न थी कोई वादे किए.. मगर फिर भी उसका इंतज़ार आज भी क्यों है? कहते है, किसी को चाहो, तो इतना चाहो की वो तुम्हारा ख़ुदा बन जाए.. मगर उस चाहत की बात ही क्या जो बस कुछ लम्हों का था.. मगर फिर भी तेरा ऐतबार क्यूँ है? यह प्यार है, या मेरी पागलपन नहीं जानता कभी तो आके कह दे ज़ालिम यह दिल आज भी तुम्हारे नाम से इतना धड़कता क्यूँ है? आखिर क्यूँ? इंतज़ार