हिंदी ही पहचान राष्ट्र की अब इसका श्रृंगार करो, हो रहा पुन: है खंड राष्ट्र का अब तो इक हुंकार भरो। जगा रही हैं सूर्य की किरणें अपना स्तित्व बचाने को, जागो अभी भी सुप्त पड़े क्यों अब आंखो में अंगार भरो। --दुर्गेश बहादुर प्रजापति हिंदी ही पहचान ....