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किसी ने दाढ़ी देखी, किसी ने कुर्ता, किसी ने पेशानी

किसी ने दाढ़ी देखी,
किसी ने कुर्ता,
किसी ने पेशानी देखी,
किसी ने जूता।
पर मैं एक इंसान देख रहा हूँ
एक अजेय से दिखने वाले
पर्वत के आगे,
मौन आँखों से,
महत लक्ष्य साधे।
ये दहलीज जिस तक वो
भागता आया था,
आज उसके पार के संसार ने
उसे रेंगना सिखाया था,
उपकरण से हीन थका-थका सा,
वातावरण की आग से पका-पका सा, बुजुर्ग और पर्वत
किसी ने दाढ़ी देखी,
किसी ने कुर्ता,
किसी ने पेशानी देखी,
किसी ने जूता।
पर मैं एक इंसान देख रहा हूँ
एक अजेय से दिखने वाले
पर्वत के आगे,
मौन आँखों से,
महत लक्ष्य साधे।
ये दहलीज जिस तक वो
भागता आया था,
आज उसके पार के संसार ने
उसे रेंगना सिखाया था,
उपकरण से हीन थका-थका सा,
वातावरण की आग से पका-पका सा, बुजुर्ग और पर्वत