घुटन सी होने लगी उसके पास जाते हुए खुद से रुठ गया हूँ उसको मनाते हुए ये ताश के पत्ते है, गिर ही जाते है हाथों की लकीरें मिट गई, उनको जमाते हुए बार बार वही मंजर देखना पड़ रहा है बार बार वही मंजर देखना पड रहा है आंखों में सपने सुख गए है, सपना सजाते हुए आलम है कि कोई पूछता ही नही अब आलम है कि कोई पूछता ही नहीं खुद से बेगाने हो गए है, सबको अपनाते हुए ख्वाहिशें