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#पलायन उस जगह की ये कहानी है, जहा के जंगल ही जिं

#पलायन


उस जगह की ये कहानी है, जहा के जंगल ही जिंदगानी है।
उस जगह की अलग रवानी है, बरसात में अब पानी पानी है।
कभी बिन मौसम पड़ती थी बर्फ जहा, अब सर्दियों में ही बस आनी है।।

जहां पेड़ो की छावं बस रहती थी, अब सड़क उस जगह बनानी है।
हाँ माना, की बिजली का था ना नामोनिशां यहाँ, तो डैम की कथा बनानी है।
अब, जब डैम घरों को ले डूबा, अब बिजली तुमने कहाँ ले जानी है।।

तब छोड़ के आए पहाड़ो को, अब वही दुनियां बड़ी निराली है।
उस जगह से दूर सब रहते हैं, हम भी जाते है ये सबसे कहते है।
सच्चाई मगर दिल जानता हैं, की किस जगह को अपना मानता है।
वो छोड़ के मस्त पहाड़ो को, तन्हा तू कहाँ चलता जाता है।।

वो बंद दरवाज़े पहाड़ो के आज भी यही पुकारते हैं।
लौट आओ वापस इस जगह में, हम दिल से अपना मानते है।
दिल सोचता है कि लौट चले, बस बहुत हुआ अब वापस चले।।

कभी लौटेंगे वापस उस जगह में, जीना जिसने सिखलाया था।
जिन टेढ़े मेढ़े रास्तो ने हमें, जिंदगी में चलना सिखाया था।
चाहें कितनी भी मुश्किल हो, उनसे लड़ना भी सिखलाया था।।

उन रास्तो में कब लौटेंगे, ये तो अभी हमको पता नही।
पर लौटेंगे कभी इसका है यकीन, यादो का दिया अगर बुझा नही।
और बुझा अगर ये दिया मगर, तो फिर कहाँ वापस जाना है।।

हैं बंद अगर तो बंद सही, तालो ने जंक तब खाना है।
फिर सालों के बाद ये सब सोच के, आखिर में तब पछताना है।
और जो टूट चुका है उसे बनाने, वापस पहाड़ में जाना है।।




 #Pahad #uttrakhand  #Poet #palayan #garhwali #uttrakhand❤️ #Love #Mountains #pahadi
#पलायन


उस जगह की ये कहानी है, जहा के जंगल ही जिंदगानी है।
उस जगह की अलग रवानी है, बरसात में अब पानी पानी है।
कभी बिन मौसम पड़ती थी बर्फ जहा, अब सर्दियों में ही बस आनी है।।

जहां पेड़ो की छावं बस रहती थी, अब सड़क उस जगह बनानी है।
हाँ माना, की बिजली का था ना नामोनिशां यहाँ, तो डैम की कथा बनानी है।
अब, जब डैम घरों को ले डूबा, अब बिजली तुमने कहाँ ले जानी है।।

तब छोड़ के आए पहाड़ो को, अब वही दुनियां बड़ी निराली है।
उस जगह से दूर सब रहते हैं, हम भी जाते है ये सबसे कहते है।
सच्चाई मगर दिल जानता हैं, की किस जगह को अपना मानता है।
वो छोड़ के मस्त पहाड़ो को, तन्हा तू कहाँ चलता जाता है।।

वो बंद दरवाज़े पहाड़ो के आज भी यही पुकारते हैं।
लौट आओ वापस इस जगह में, हम दिल से अपना मानते है।
दिल सोचता है कि लौट चले, बस बहुत हुआ अब वापस चले।।

कभी लौटेंगे वापस उस जगह में, जीना जिसने सिखलाया था।
जिन टेढ़े मेढ़े रास्तो ने हमें, जिंदगी में चलना सिखाया था।
चाहें कितनी भी मुश्किल हो, उनसे लड़ना भी सिखलाया था।।

उन रास्तो में कब लौटेंगे, ये तो अभी हमको पता नही।
पर लौटेंगे कभी इसका है यकीन, यादो का दिया अगर बुझा नही।
और बुझा अगर ये दिया मगर, तो फिर कहाँ वापस जाना है।।

हैं बंद अगर तो बंद सही, तालो ने जंक तब खाना है।
फिर सालों के बाद ये सब सोच के, आखिर में तब पछताना है।
और जो टूट चुका है उसे बनाने, वापस पहाड़ में जाना है।।




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