मासूमियत के पालने में जिसको पलना था उम्र से पहले ही वो बड़ी हो गई खुशी से जिसको चहकना था तितलियों के पीछे भागना था ख़ामोशी से उसकी दोस्ती हो गई जिसके लिए खुला आसमां भी कम था कैसे दीवारें उसकी साथी हो गई भीनी भीनी सी महक थी जिसके बचपन में अभी कैसे वो बचपन से बेखबर हो गई रूठने मनाने के दिन तो कभी आए नहीं जिसके वो खुद को पहचानने में ही मशरुफ हो गई जिसके घाव कभी दिखे नहीं वो खुद अपने दर्दों की दवा हो गई डर डर कर जिसने जीना सीखा आज, उसकी ताकत, उसकी हिम्मत, हो गई वो तुम, वो मैं, वो हम में से कोई.. वो गुज़री हुई कहानी, किताब हो गई वो तुम, वो मैं, वो हम में से कोई.. वो निडर, बेख़ौफ़ हो गई। मासूमियत के पालने में जिसको पलना था उम्र से पहले ही वो बड़ी हो गई खुशी से जिसको चहकना था तितलियों के पीछे भागना था ख़ामोशी से उसकी दोस्ती हो गई जिसके लिए खुला आसमां भी कम था कैसे दीवारें उसकी साथी हो गई भीनी भीनी सी महक थी जिसके बचपन में अभी