❤रहती हूँ , किराये की काया में... रोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाती हूँ... मेरी औकात है बस मिट्टी जितनी... बात , मैं महल मिनारों की कर जाती हूँ... जल जायेगी ये मेरी काया एक दिन.... फिर भी , इसकी खूबसूरती पर इतराती हूँ.... मुझे पता हेै, मैे खुद के सहारे श्मशान तक भी ना जा सकूंगी.. इसीलिए जमाने में दोस्त बनाती हूँ ....