आँखो की इस झील में, सोचा था हर दर्द छूपाऊंगा, खुद मुसकुरकार दुनियाँ को मैं, खुशियों का पैगाम सुनाऊँगा , कम्बखत झील भी छोटा पर गया, जब दर्द की गहराई को देखा, निकल परा आँसू का मंजर, जब झील की साहिल ने रोका, नीरज की कलम से........ आँखों का झील।