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कुछ जख्म अब पायाब हैं कुछ हैं अभी ताजे ही खिड़कियो

कुछ जख्म अब पायाब हैं कुछ हैं अभी ताजे ही
खिड़कियों से तो अब भी झांकने आ जाती है वो,
बंद दिखते हैं तो उसके बस दरवाजे ही shivam Thakur
कुछ जख्म अब पायाब हैं कुछ हैं अभी ताजे ही
खिड़कियों से तो अब भी झांकने आ जाती है वो,
बंद दिखते हैं तो उसके बस दरवाजे ही shivam Thakur