हमने मासुमियत को तड़पते बजारो मे देखा है दम तोड़ति गरीबो कि लचारि को देखा है कोई अपना अपना नहि होता है जहा मे साहब एक भाई को भि बुरे वख्त मे गैर होते देखा है ©अनवर अनवर हु यार koi saga nahi