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धूमिल होते ख़्वाब, आँसुओं का सैलाब ला रहे हैं..!

 धूमिल होते ख़्वाब,
आँसुओं का सैलाब ला रहे हैं..!

गहरी खायी में ग़म की,
हम ख़ुद को पा रहे हैं..!

कोशिश तो बहुत की,
हमने जीत जाने की..!

पर हार से नाक़ामयाबी का,
अपना मुँह छुपा रहे हैं..!

कब तक जियेंगे कौन जाने,
किस वजह से हम..!

मर मर के जीने की,
इच्छा भुला रहे हैं..!

नहीं बिस्तर मिला सुकून का,
इस जन्म में कभी हमें..!

चिता पर लेट कर अपनी,
हम ख़ुद को ही सुला रहे हैं..!

©SHIVA KANT
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