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जैसे हमारे भीतर पलने और पोषित होने वाले कीटाणु हमा

जैसे हमारे भीतर पलने और पोषित होने
वाले कीटाणु हमारे अस्तित्व पर विश्वास
नहीं कर सकते क्योंकि उनके लिए यह
असंभव है विश्वास करना, उनकी अपनी
परिधि है उससे बाहर वो नहीं सोच सकते ।
ठीक वैसे ही आदमी का भी यही हाल है
जो पोषित उस परमात्मा के द्वारा हो रहा
पर प्रश्न भी उसके अस्तित्व पर उठाता है।

©Jai Pathak
  #अस्तित्व