“मोहब्बत का मंज़िल” ग़ज़ल –3 आज मैंने तेरा नाम अपनी ज़िन्दगी का गीत रखा है। तेरे मोहब्बत के अल्फाज़ का नाम ग़ज़ल रखा है। अपनी हाथों की लकीरों में आपको अपना क़िस्मत बन रखा है। शामिल कर लिया तुझे मैंने आज से अपनी ज़िन्दगी बना रखा है। आँखों से उतार दिल में अपने बसा रखा है। मोहब्बत के मुसाफ़िर ने समुंदर की गहराई नाप रखा है। इक उम्र हो गई मोहब्बत बिना ये जहां ज़िन्दगी नहीं देख रखा है। मोहब्बत के रास्ते मील का पत्थर नापते आपकी अपना मंज़िल बना रखा है। #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #kkdrpanchhisingh #विशेषप्रतियोगिता #kkकविसम्मेलन #kkकविसम्मेलन3