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स्त्री हूँ मैं ◆◆◆◆◆ हर रोज़ खुद से लड़ती हूँ मैं।

स्त्री हूँ मैं
◆◆◆◆◆

हर रोज़ खुद से लड़ती हूँ मैं।
स्त्री हूँ बस इतना कहती हूँ मैं।
थोड़ी सी चुगली थोड़ी खींचतान की आदत है मुझे।
खुद से खुद का सामना हर रोज़ करती हूँ मैं।
खुद को ताने कसती हूँ खुद को अकड़ दिखाती हूँ मैं।
क्या करूँ स्त्री हूँ, आदतन इस रूप में हर रोज़ ढलती हूँ मैं।
मैं दुश्मन हूँ खुद की, और खुद की दोस्त भी।
हर रोज मरकर भी जीती हूँ मैं।
कहते हैं स्त्री बड़ी सहनशील होती हैं।
फिर क्यों खुद से ही जलन महसूस करती हूँ मैं।
पहचान मेरी क्यों रूढ़ियों में जकड़ी है।
हर रोज मुर्दा सी लगती हूँ मैं।
स्त्री हूँ मैं हाँ खुद ही खुद से हर रोज हर पहर लड़ती हूँ मैं।
खीझती हूँ दूसरों पर रीझती हूँ खुद पर
ऐसे ही अपना अस्तित्व खोती हूँ मैं।
कोई कहने वाला नही न ही समझने वाला की ये लड़ाई बन्द हो।
तभी तो स्त्री होकर खुद की दुश्मन कहलाती हूँ मैं। 
हाँ हर रोज खुद से लड़ती हूँ मैं।
क्योंकि एक स्त्री हूँ मैं। - नेहा शर्मा #NojotoQuote #खुदकिखुदसेबात
स्त्री हूँ मैं
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हर रोज़ खुद से लड़ती हूँ मैं।
स्त्री हूँ बस इतना कहती हूँ मैं।
थोड़ी सी चुगली थोड़ी खींचतान की आदत है मुझे।
खुद से खुद का सामना हर रोज़ करती हूँ मैं।
खुद को ताने कसती हूँ खुद को अकड़ दिखाती हूँ मैं।
क्या करूँ स्त्री हूँ, आदतन इस रूप में हर रोज़ ढलती हूँ मैं।
मैं दुश्मन हूँ खुद की, और खुद की दोस्त भी।
हर रोज मरकर भी जीती हूँ मैं।
कहते हैं स्त्री बड़ी सहनशील होती हैं।
फिर क्यों खुद से ही जलन महसूस करती हूँ मैं।
पहचान मेरी क्यों रूढ़ियों में जकड़ी है।
हर रोज मुर्दा सी लगती हूँ मैं।
स्त्री हूँ मैं हाँ खुद ही खुद से हर रोज हर पहर लड़ती हूँ मैं।
खीझती हूँ दूसरों पर रीझती हूँ खुद पर
ऐसे ही अपना अस्तित्व खोती हूँ मैं।
कोई कहने वाला नही न ही समझने वाला की ये लड़ाई बन्द हो।
तभी तो स्त्री होकर खुद की दुश्मन कहलाती हूँ मैं। 
हाँ हर रोज खुद से लड़ती हूँ मैं।
क्योंकि एक स्त्री हूँ मैं। - नेहा शर्मा #NojotoQuote #खुदकिखुदसेबात