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बिना गाँव और बिना किसान किसी भी देश का संपूर्ण होन

बिना गाँव और बिना किसान किसी भी देश का संपूर्ण होना संभव नहीं है।
चीर के जमीन, मैं उम्मीद बोता हूँ।
मैं किसान हूँ, चैन से कहां सोता हूँ।।

गांव से शहर पढ़ने आये    दीप ने क्या खूब लिखा है,
चिन्ता वहाँ भी थी चिन्ता यहाँ भी हैं, गांव में तो केवल #फसले ही खराब होती थी, शहर में तो पूरी #नस्ले ही खराब है !!
मुझे वो भले कहते रहे, ” मैं कृषि प्रधान हूँ”
देखो ये चिथड़े पहने हुए मैं ही हिंदुस्तान हूँ,
जाति – कर्म और धर्म से बस में किसान हूँ,
हर नुमाइश में मिलूंगा,अब मैं चीथड़े पहने हुए,
कल भले ही शान था , पर आज मैं कंगाल हूँ,
पेट भर रहा हूँ देश का,पर आज अब परेशान हूँ,
मुझे वो भले कहते रहे, “मैं कृषि प्रधान हूँ”
चीथड़ों में लिपटा हुआ मैं आज का हिंदुस्तान हूँ,

☠☠Deepu prajapati☠☠ #Time
बिना गाँव और बिना किसान किसी भी देश का संपूर्ण होना संभव नहीं है।
चीर के जमीन, मैं उम्मीद बोता हूँ।
मैं किसान हूँ, चैन से कहां सोता हूँ।।

गांव से शहर पढ़ने आये    दीप ने क्या खूब लिखा है,
चिन्ता वहाँ भी थी चिन्ता यहाँ भी हैं, गांव में तो केवल #फसले ही खराब होती थी, शहर में तो पूरी #नस्ले ही खराब है !!
मुझे वो भले कहते रहे, ” मैं कृषि प्रधान हूँ”
देखो ये चिथड़े पहने हुए मैं ही हिंदुस्तान हूँ,
जाति – कर्म और धर्म से बस में किसान हूँ,
हर नुमाइश में मिलूंगा,अब मैं चीथड़े पहने हुए,
कल भले ही शान था , पर आज मैं कंगाल हूँ,
पेट भर रहा हूँ देश का,पर आज अब परेशान हूँ,
मुझे वो भले कहते रहे, “मैं कृषि प्रधान हूँ”
चीथड़ों में लिपटा हुआ मैं आज का हिंदुस्तान हूँ,

☠☠Deepu prajapati☠☠ #Time