अंधेरे से उजाले की ओर.... मन के अंदर जब तक अंधेरा ना हो, तब तक हमें बाहर उजाला नज़र नहीं आता... अक्सर मंज़िल उन्हें ही मिलती हैं, जिनके हथेलियों पर, लकीरों के अलावा कुछ नहीं होता... संदीप कोठार sandeepmkothar@gmail.com अंधेरे से उजाले की ओर.... मन के अंदर जब तक अंधेरा ना हो, तब तक हमें बाहर उजाला नज़र नहीं आता... अक्सर मंज़िल उन्हें ही मिलती हैं, जिनके हथेलियों पर, लकीरों के अलावा कुछ नहीं होता...