क्या कहे साहब इस इंसान के बारे में कि ये इतना गिर चुका है कि अब तो जिस्म की भी मंडी लगाता है जिस्म का सौदा करता है अब मेरा ना तो कोई रिश्ता रहा बस रह गया तो यह जिस्म का व्यापार ना ही कोई नाम, बाहर वेश्या, तो अंदर एक नंबर मेरे भी सपने थे जिनको भरनी थी उड़ान पर इस बात से मशरूफ थी कि बंद कोठरी में ही रह जाएगी मेरी जान शायद मिटाने अपनी पेट की भूख उन्होंने मुझे बेच दिया था मुझसे मेरा जिस्म बिकवा दिया था फिर मेरी मजबूरी का फायदा उठा कर उन वैश्य दरिंदों ने मुझे ही चरित्रहीन बता दिया था कोई हक नहीं होता कोई चरित्र नहीं होता मेरे चरित्र पर सवाल करते हो और जब मैं सवाल पूछूं तो चुप क्यों हो जाते हो लाज शर्म की बात करते हो जब तुम मेरे पास आते हो तब यह ज्ञान के सागर कहां छुप जाते हैं अपनी जरूरत के हिसाब से तुमने कानून बदल दिए मालूम भी है तुम्हारे इस समाज ने कितने कत्ल किए She was never touched as admiration but as an exploitation. PART-2