आज़ मेरे दोतरफा चेहरों मे ठन गई, कि पता हि न चला कब आत्मसम्मान, आत्मग्लानी बन गई। जिस काले रंग से मूंदी थी अपनो से आँखें मे मैने, उसी रंग से आज़ मेरी रूह भी सन गई, कि पता हि न चला कब आत्मसम्मान, आत्मग्लानी बन गई। जब कामयाबियों के पहाड़ों पर चड़ बिगुल बजाया मैंने, ज़मी पर लाने वाली माँ साथ नहीं थी। जब आसमानों पे पंख फैलाए जज़्बा दिखाया मैंने, वोह पापा कि सख्त निगाहें साथ नहीं थी। उन्का क्या कुसूर वोह तो सहमते ख्वाब मे भी थे साथ मेरे, कि मेरी हकीकतों कि दुनियां हि उनकी बेड़ियाँ बन गई। कि पता हि न चला कब आत्मसम्मान, आत्मग्लानी बन गई। #shaayavita #haqiqat #parents #ignorance #dotarfah #nojoto