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( मैं कर दूं कलम, दिलकस पत्थर को तोड़ने, आईना मुझक

( मैं कर दूं कलम, दिलकस पत्थर को
तोड़ने, आईना मुझको आया नहीं

मैं कर दूं कलम, कलम बेबस स्याही को
मुझको होठों से, कलम को पकड़ना भाया नहीं

मेरी चलती डगर, मुझको मुझसे डराती डुबाती रही
मेरे गिरते संभलते कदम को, गिरना अभी तक आया नही

मुझको मेरे सफर में संभाला अभी तक, मुझसे बेहतर नही
जिंदगी हंसते, संभलते, रोते, बिखरते, सफर में जीना किसी को आया नही )

©( cop prahlad Singh )( feeling writer)
  जीना अभी तक मुझको आया नहीं

जीना अभी तक मुझको आया नहीं #जानकारी

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