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जरा चुपचाप तो बैठो कि दम आराम से निकले, इधर हम हिच

जरा चुपचाप तो बैठो कि दम आराम से निकले,
इधर हम हिचकी लेते हैं उधर तुम रोने लगते हो।

तुम समझते हो कि जीने की तलब है मुझको,
मैं तो इस आस में ज़िंदा हूँ कि मरना कब है।

तमाम उम्र जो हमसे बेरुखी की सबने,
कफ़न में हम भी अजीज़ों से मुँह छुपा के चले।

लम्बी उम्र की दुआ मेरे लिए न माँग,
ऐसा न हो कि तुम भी छोड़ दो और मौत भी न आये।

वही तफरीक का आलम है बाद-ए-मर्ग भी यारों,
न कतबे एक जैसे हैं न कब्रें एक जैसी हैं। Jara Chup-Chap Toh Baitho Ke Dum Aaram Se Nikle,
Idhar Hum Hichki Lete Hain Udhar Tum Rone Lagte Ho.
जरा चुपचाप तो बैठो कि दम आराम से निकले,
इधर हम हिचकी लेते हैं उधर तुम रोने लगते हो।

Tum Samjhate Ho Ke Jeene Ki Talab Hai Mujh Ko,
Main Toh Iss Aas Mein Zinda Hun Ke Marna Kab Hai.
तुम समझते हो कि जीने की तलब है मुझको,
जरा चुपचाप तो बैठो कि दम आराम से निकले,
इधर हम हिचकी लेते हैं उधर तुम रोने लगते हो।

तुम समझते हो कि जीने की तलब है मुझको,
मैं तो इस आस में ज़िंदा हूँ कि मरना कब है।

तमाम उम्र जो हमसे बेरुखी की सबने,
कफ़न में हम भी अजीज़ों से मुँह छुपा के चले।

लम्बी उम्र की दुआ मेरे लिए न माँग,
ऐसा न हो कि तुम भी छोड़ दो और मौत भी न आये।

वही तफरीक का आलम है बाद-ए-मर्ग भी यारों,
न कतबे एक जैसे हैं न कब्रें एक जैसी हैं। Jara Chup-Chap Toh Baitho Ke Dum Aaram Se Nikle,
Idhar Hum Hichki Lete Hain Udhar Tum Rone Lagte Ho.
जरा चुपचाप तो बैठो कि दम आराम से निकले,
इधर हम हिचकी लेते हैं उधर तुम रोने लगते हो।

Tum Samjhate Ho Ke Jeene Ki Talab Hai Mujh Ko,
Main Toh Iss Aas Mein Zinda Hun Ke Marna Kab Hai.
तुम समझते हो कि जीने की तलब है मुझको,