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टूटते रिश्तों को देख ख़याल आया .. आज सामने फ़िर एक

टूटते रिश्तों को देख ख़याल आया ..
आज सामने फ़िर एक सवाल आया ..।। 

बैठ मेरे पास किताब घंटों रोती रही.. 
कलम को आज क्यूँ इतना मलाल आया..।।

रात के सिसकते सन्नाटे ने भी पूछा ...  
तेरी ख़ामोशी को क्यूँ बेवजह ज़लाल आया..।।

टूटते रिश्तों को देख ख़याल आया .. आज सामने फ़िर एक सवाल आया ..।। बैठ मेरे पास किताब घंटों रोती रही.. कलम को आज क्यूँ इतना मलाल आया..।। रात के सिसकते सन्नाटे ने भी पूछा ... तेरी ख़ामोशी को क्यूँ बेवजह ज़लाल आया..।।

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