Lockdown 2.0 D2@संयोग श्रृंगार#poem02 हे प्रिये,तुम हवा सी होती, इन झोंकों में मैं मदमस्त मंडराता। अधूरी जो भी हो बात दिलों की, तुम्हें और भौरों को मैं सुनाता। तितलियां पँछी भी साथ चलते, तुझसे दिल की बात कह पाता। भूली बिसरी यादों का कारवाँ, उन राहों पर तुम्हें गले लगाता। इन नयनों की आँख मिचौली, तुम चाँदनी मैं चाँद बन जाता। निकले सैर पर हम दोनों परिंदे, इजाजत होतो आशियां बनाता। खिलती तुम्हारे ओठो की लाली, सतरंगी रगों से तुम्हें मिलाता। हे प्रिये,तुम हवा सी होती, केशों के आग़ोश में छिप जाता। मद्धम-मद्धम चेहरे में हँसी लिए, तुमको हवाओं में मैं ख़ूब हँसाता। बारिश फुहारों की बन हवा तुम, इन लम्हों में तेरी ओर चला आता। आँधी तूफान अगर आये तुम पर, साया बन सच मैं तुम्हें बचाता। हे प्रिये,तुम हवा सी होती, इन झोकों में मैं मदमस्त मंडराता। ✍️लिकेश ठाकुर Lockdown 2.0 D2@संयोग श्रृंगार#poem02 हे प्रिये,तुम हवा सी होती, इन झोंकों में मैं मदमस्त मंडराता। अधूरी जो भी हो बात दिलों की, तुम्हें और भौरों को मैं सुनाता। तितलियां पँछी भी साथ चलते,