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सगे-संबंधी भाई-बंधु किसी के, आते थे जब कभी गावों म

सगे-संबंधी भाई-बंधु किसी के, आते थे जब कभी गावों में
 रिश्तेदारी थी जहां, उस घर को छोडकर सभी के घरों में खातिर होती थी। 
ढूढने जाना पड़ता था उन्हे की कहा है वोह, फिर कही जाकर उनसे मुलाकात होती थी। 
अब कही नही दिखता है,वोह आदर,सम्मान । बाहरी आडंबर की सभी ने खालें ओडी थी। 
मुल्क की खुशहाली का राज थे जो, आज सबसे ज्यादा नफरत उन्हीं गांवों में फैली थी। 
देख कर यह सब आत्मा किलप उठती हैं ऐसी तो कभी कल्पना भी नहीं की थी। 
बडी दयनीय स्थिति हो गई है गावो की, ये बातें कभी किसी ने सोची भी नही थी।

©कुलदीप पटेरिया
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