हे रूह तेरे जिस्म में तो,तेरा दिल क्या गवाही देगा कि तुमने सच्ची मोहब्बत,क्या सबूत बेवफाई का देगा बिछड़न की तड़प लिख देते हो चंद अल्फाजों में यह क्या तुम खाक मोहब्बत करते हो,,,, जब है ही नहीं कुबूल हिम्मत ए इजहार में तब क्या मर्द ए खुदा बनते हो एतबार में,,,, दिल्लगी बस दिल कि लगी ही थी इबादत ना बन सकी जिंदगी में कभी,,,,,