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अंधेरी रात ‘बलात्कार: समाज का कड़वा सत्य’ अंधेरी र

अंधेरी रात
‘बलात्कार: समाज का कड़वा सत्य’ अंधेरी रात

चल पड़ी थी वो अंधेरे से रास्ते पर ,
मन में डर का एक वीराना सा डर भर,
सिसकियों से भर चुका था,
सहमा हुआ ये दिल उसका,
पलट उसने देख लिया था,
हब्शियों का एक झुंड ।।
अंधेरी रात
‘बलात्कार: समाज का कड़वा सत्य’ अंधेरी रात

चल पड़ी थी वो अंधेरे से रास्ते पर ,
मन में डर का एक वीराना सा डर भर,
सिसकियों से भर चुका था,
सहमा हुआ ये दिल उसका,
पलट उसने देख लिया था,
हब्शियों का एक झुंड ।।