फस्ल ए गुल खिला दो फिर से बहार आ जाये, धरा खुर्शीद अम्बर मे फिर निखार आ जाये, उठे खिल गुल गुलिस्ता फिर से चमकदार हो जाये, भंवर पर फिर तुम्हारा प्यार बे सुमार आ जाये।। skp@basti fashl ye gul