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इज़हार कर देते तो, वो आज हमारे होते..! नहीं होते न

 इज़हार कर देते तो,
वो आज हमारे होते..!
नहीं होते नज़रों से दूर,
जान से प्यारे होते..!
तरस रही हैं आँखें,
जो अब उनके दीदार को..!
दिलक़श दिलबर संग,
ख़ूबसूरत नज़ारे होते..!
न भटकते दर बदर यूँ ही,
न ख़्वाबों के सहारे होते..!
न जीते ज़िन्दगी लावरिशों की तरह,
न ही हम बेचारे होते..!
न रहती ख़्वाहिशें अधूरी हमारी,
न ही उसे पाने को रोते..!
न कटते बेचैनी में दिन और रातें,
औढ़तें कफ़न और क़ब्र में सोते..!

©SHIVA KANT
  #Izhaar–e–mohabbat

Izhaar–e–mohabbat #Poetry

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