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बुझते हुए आग़ की रौशनी सा मैं, इस भरे शहर में अजनब

बुझते हुए आग़ की रौशनी सा मैं,
इस भरे शहर में अजनबी सा मै।

मैं मम्मा पापा का चमचमाता तारा,
सितारों की दुनियां में अजनवी सा मैं।

पहचानते है हम उन्हें ये अलग बात है,
लेकिन उनके लिए अब अजनबी सा मैं।

धूध में लिपटे खामोश पेड़ो के बीच,
मुसाफिरों की दुनिया में अजनबी सा में।

खुद में मन मस्त रहने का यू आलम तो देखिए,
की अपने ही घर में अजनबी सा मैं।

ठहरा था खामोशियों के बीच,
तन्हाइयों की दुनिया में अजनबी सा मैं।

जानते तो बहुत लोग हैं,
लेकिन सब के लिए अजनबी सा मै।

यहां मेरी दुनिया बस एक बंद कमरे तक,
रांची तेरी दुनिया में अजनबी सा मै। #syahi2020
बुझते हुए आग़ की रौशनी सा मैं,
इस भरे शहर में अजनबी सा मै।

मैं मम्मा पापा का चमचमाता तारा,
सितारों की दुनियां में अजनवी सा मैं।

पहचानते है हम उन्हें ये अलग बात है,
लेकिन उनके लिए अब अजनबी सा मैं।

धूध में लिपटे खामोश पेड़ो के बीच,
मुसाफिरों की दुनिया में अजनबी सा में।

खुद में मन मस्त रहने का यू आलम तो देखिए,
की अपने ही घर में अजनबी सा मैं।

ठहरा था खामोशियों के बीच,
तन्हाइयों की दुनिया में अजनबी सा मैं।

जानते तो बहुत लोग हैं,
लेकिन सब के लिए अजनबी सा मै।

यहां मेरी दुनिया बस एक बंद कमरे तक,
रांची तेरी दुनिया में अजनबी सा मै। #syahi2020