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फर्क पड़ता है फर्क पड़ता है तब जब दिखाती हूँ कोई फ

फर्क पड़ता है
फर्क पड़ता है तब
जब दिखाती हूँ
कोई फर्क पड़ता नहीं /
बहुत दुखता है जब
दिखाती हूँ कोई दर्द नहीं/
बहुत कुछ कहना हो
तो ओढ़ लेती हूँ खामोशी /
पास आना चाहती हूँ
तो खुद को खींच लेती हूँ
तुझ से दूर
कितने रोड़े अटकाती हूँ
खुद को तेरी समझने की कोशिशों में/
और फिर खुद ही लगा भी देती हूँ इल्जाम
कि तू तो मुझे समझता ही नहीं...

नदी, धरती और समंदर / ऋतु जोशी

©KhaultiSyahi
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